गौवंश हाइवे व सड़कों पर क्यों आ रहा हैं- इंडिया प्राइम पडताल

महेशसिंह तंवर । दिल्ली जयपुर हाइवे पर हुए एक पड़ताल मे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। अक्सर गौवंश को सड़को, हाइवे पर बैठे देखा होगा। लेकिन गाय, या बैल सड़को के किनारे या बीच सड़क में क्यो आकर बैठते है इसकी वजह पहली बार सामने आई है। एन एच 8 पर की गई पड़ताल में यह तथ्य सामने आया । पट्रोल व डीजल के महीन अंश जो धुएं के जरिए गौवंश के शरीर में प्रवेश कर रहे है। धुआं लगातार गायो में नशे का स्तर बनाए रखता है जिससे उन्हे भूख कम लगती है।

धुआँ में पट्रोल डीजल के बारीक कण, गौवंश के लिए हानीकारक

पशु चिकित्सको के मुताबिक गोवंश को आवश्यकता के मुताबिक चारा नही मिल पा रहा है। इसलिए अधिकतर गोवंश हाइवे के बीच में आ रहा है।  हाइवे पर वाहनों से निकलने धुँए के कार्बनिक पदार्थो को सांस के जरिए शरीर में लेते है , पट्रोल डीजल के बरीक कण गोवंश के शरीर में नशा उत्पन्न करते है। पशु चिकित्सकों के मुताबिक हाइवे पर चलने वाले वाहने की हवा का संचालन नियमित होता है और मख्खी, मच्छर  से पशुओं को छुटकारा मिल जाता है।

अकेले जयपुर जिले के कोटपूतली इलाके में गौवंश के अचानक सडको पर आने से दुर्घटनाओ में खासी बढोत्तरी हुई है। अच्छी बरसात के बाद पशुधन के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध हैं। लेकिन गायों के अक्सर सडको किनारे या बीच में बैठने का कारण स्थानीय नगर पालिका के अधिकारियो ने जानने का प्रयास किया।

गौवंश के सडको पर आने की वजह

स्थानीय निकाय के अधिकारियो के मोटे मोटे अाकडो़ के अनुसार अकेले कोटपूतली के आबादी क्षेत्रो में 5000 से 7000 गाए  पाली जा रही हैं। दिल्ली और एनसीआर मे दूध की सप्लाई की यही से हो रही है। दिल्ली की मदर डेयरी और जयपुर डेयरी के अलावा कई प्राइवेट दूध डेयरी इन पशुपालको के दूध पर निर्भर है।

रोचक बात यह है कि समूचे तहसील क्षेत्र में केवल 18 पंजीकृत गोशालाएं संचालित हो रही है। ऐसे में बडे पैमाने पर अवैध रुप से पशुपालन स्थानीय प्रशासन के लिए मुश्किले खड़ी कर रहा है। एक तरफ पानी और चारे का इंतजाम तो दुसरी तरफ आवारा पशुओं से जुडी समस्या ने विकराल रुप धारण कर लिया है। ज्यादातर पशुपालक चारा का खर्च बचाने के लिए दूध निकाल कर गायों को आवारा छोड रहे है जिसकी वजह से अावारा पशु सड़के हाइवे पर आ रही है।

अवैध दूध डेयरिया बड़ी वजह

अकेले कोटपूतली एनएच8 पर ही हर रोज औसतन 2000 आवारा पशु हाइवे के बीच या आसापास नजर आते हैं। आबादी क्षेत्र में इनकी संख्या लगभग आधी है। आबादी क्षेत्र हो या  सडक बीच राह पर बैठे गायो का झुंड न केवल शहर के यातायात को प्रभावित करते है बल्कि कई सडक दुर्घटनाओ के भी कारण बन रहे है।

इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में दूध नही देने वाली गायों को पशुपालक लावारिश छोड  रहे है। यही पशु गांव खेतो में फसलों को नुकसान पहुचाते है। किसाने इन्हे खदेड कर हाइवे की तरफ जाने को मजबूर करत है। शहर में इन पशुवों की भूख या तो कचरा या प्लास्टिक खाकर शांत होती है।

अवैध डेयरी अथवा दुग्ध व्यवसाय बछडो को जन्म देने के कुछ समय बाद ही गांव से दूर शहरी इलाको में रात के समय छोड जाते है। इससे उन्हे पालने में कोई खर्च नही आता।

पुलिस की नांकेबंदी के चलते भी अनेक गौवंश से भरे ट्रक गौशालाओं में छोडे जाते है। गौशालाओं में चारा संकट व गोतस्करो के पकडे जाने के भय से भी वे लावारिश पशुओ के रूप में दिन प्रतिदिन बढते जा रहे है।

क्या कहना है स्थानीय प्रशासन का

इस संबंध में थानाधिकारी रविन्द्र प्रताप सिंह का कहना है कि आए दिन हाईवे पर होने वाले हादसों के लिए पशु भी जिम्मेदार है। मैने पालिका ईओ को अनेक बार पत्र लिखकर इस समस्या से अवगत कराया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

इधर पालिका ईओ नरतपत सिंह राजपूरोहित का कहना है कि यह सही है कि शहर में आवारा पशु इतने ज्यादा हो गए है जिससे शहर का आमजन परेशान है। शीघ्र ही इस संबंध में प्रशासनिक अधिकारियों व पालिका बोर्ड की बैठक बुलाकर निश्चित समाधान के प्रयास किए जाएंगे।

 

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