कब तक कंधे पर पत्नी की लाश ढोते रहेगा गरीब !
National Desk ओडिशा में कालाहांडी के आदिवासी दाना मांझी की तस्वीरों ने लोगों को झकझोर दिया. वहीं ओडिशा के ही बालासोर से फिर ख़बर आई कि एक महिला के शव को ले जाने के लिए कोई वाहन नहीं था. दरअसल ये दुर्दशा एक राज्य की नहीं, बल्कि हमारी सामुदायिक स्वास्थ्य व्यवस्था की है, जिस पर सरकार का ध्यान घटता जा रहा है.
बुधवार सुबह स्थानीय लोगों ने दाना माझी को अपनी पत्नी अमंग देई के शव को कंधे पर लादकर ले जाते हुए देखा. 42 वर्षीय अमंग की मंगलवार रात को भवानीपटना में जिला मुख्यालय अस्पताल में टीबी से मौत हो गई थी.खास बात यह है कि ऐसी स्थिति के लिए ही नवीन पटनायक की सरकार ने फरवरी में ‘महापरायण’ योजना की शुरुआत की थी. इसके तहत शव को सरकारी अस्तपताल से मृतक के घर तक पहुंचाने के लिए मुफ्त परिवहन की सुविधा दी जाती है.
जबकि माझी ने बताया कि बहुत कोशिशों के बावजूद भी उसे अस्पताल के अधिकारियों से किसी तरह की मदद नहीं मिली.माझी ने कहा, ‘तमाम कोशिशों के बाद जब मदद नहीं मिली, तो मैंने पत्नी के शव को एक कपड़े में लपेटा और उसे कंधे पर लादकर भवानीपटना से करीब 60 किलोमीटर दूर रामपुर ब्लॉक के मेलघारा गांव के लिए पैदल चलना शुरू कर दिया.