उन्तीस साल की उम्र में देश को दी उन्तीस लाख वृक्षों की सौगात

उन्तीस साल की उम्र में देश को दी उन्तीस लाख वृक्षों की सौगात
टोंक : पोधा चोर से ट्रीमेन की उपाधि पाने वाले टोंक जिले के लाम्बा गाँव निवासी विष्णु लाम्बा द्वारा स्थापित संघटन कल्पतरु संस्थान के माध्यम से अब तक बिना सरकारी सहायता के राजस्थान सहित देश के विभिन्न राज्यों में पांच लाख से अधिक पौधे लगाकर बड़े किये जा चुके है ! ग्याहरा लाख से अधिक पौधे निःशुल्क वितरण किये गए है और पर्यावरण विरोधी योजनाओं का विरोध कर तेरह लाख से अधिक विशाल हरे वृक्षों को कटने से बचाया जा चुका है ! उन्तीस वर्षीय लाम्बा ने अपने इक्कीस वर्षों का लेखाजोखा मय दस्तावेज़ सरकार की सेवा में प्रस्तुत किया था ! जिस पर राजस्थान के वन, पर्यावरण, खेल एवं युवा मामले मंत्री गजेंद्र सिंह खिमसर ने प्रसंशा पत्र देकर मुहर लगाईं है ! साथ ही कार्यों से प्रभावित मंत्री खिमसर ने केंद्रीय युवा मामले मंत्री विजय गोयल, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन और राजस्थान के प्रधान वन संरक्षक को पत्र लिखकर पुरस्कार देनें की अभिशंषा की भी है |
उन्तीस लाख वृक्षों की सौगात
ट्रीमैन लाम्बा विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर अपने गृह जिले टोंक के सघन दौरे पर रहेंगे ! टीम कल्पतरु के साथ वे सुबह आठ बजे दुधिया बालाजी संत आश्रम में संत रामजी महाराज के नेतृत्व में कल्पवृक्ष व पंचवटी की स्थापना करेंगे ! सुबह दस बजे अपने जन्म स्थान ग्राम पंचायत लाम्बा स्थित खेड़िया देवजी मंदिर में चल रहे नव कुंडीय यज्ञ के समापन पर महंत श्रवण लाल वैष्णव व रांम प्रसाद गार्ड के नेतृत्व में कल्पवृक्ष व पंचवटी की स्थापना करेंगे ! दोपह बाहरा बजे विभिन समाजों से जुड़े किसानों के साथ बनास में चल रहे अवैध खनन क्षेत्र का दौरा कर बनास पूजन करेंगे ! शाम चार बजे सीआईएसएफ लाइन देवली में पर्यावरण प्रेमी और सीआईएसएफ कमांडेड निर्विकार वर्मा के नेतृत्व में कल्पवृक्ष व पंचवटी की स्थापना करेंगे, जहाँ वर्मा के सहयोग से पांच हजार छायादार पौधे लगाए जाएंगे ! विश्व पर्यावरण दिवस पर पांच जून को लाम्बा राज्य स्तरीय समारोह में वन मंत्री गजेंद्र सिंह खिमसर के साथ शिरकत करेंगे |
विष्णु लाम्बा
परिचय – विष्णु लाम्बा का जन्म राजस्थान  के टोंक जिले के मेहन्दवास थाना क्षेत्र से तीन किलो मीटर दूरी पर बसे गाँव लाम्बा में तीन जून उनीस सौ सत्यासी को हुआ ! दुनियाँ के लिए इस अपरिचित से गाँव ने ट्रीमेंन के प्रयासों से आज दुनिया में अपनी अलग पहचान ‘पर्यावरणीय दृष्टि से राज्य के प्रथम आदर्श ग्राम’ के रूप में बनाई है ! विष्णु लाम्बा को बचपन से ही पेड़-पौधे और पशु-पक्षियों से गहरा लगाव था ! परिवार के संस्कारों नें उन्हें प्रकृति और संस्कृति के बहुत करीब रखा. संभवतया पांच-सात साल की उम्र रही होगी ! गाँव के चौराहे पर सर पर मटका लिए हेंडपंप पर पानी भरनें जाती माँ के साथ-साथ चल पड़े और पास में गोबर की रेवड़ी में गुठली से आम के पौधे की पत्तियाँ निकली दिखाई दी और देखते ही चिल्ला कर माँ से बोले ‘’माँ आम’’…. और माँ से जिद्द करनें लगे की इसे घर लेकर चलना है. माँ नें अपनी झोली में डाला और घर ले आई…. बस यही दिन था और आज का दिन है पर्यावरण और विष्णु लाम्बा एक दूसरे के पूरक हो गए… वही दूसरी और घर में सुबह-शाम गाय का दूध निकालती माँ, रात को माँ से रामायण सुनकर सोना, पिता जी का मंदिर में शखं नगाड़े बजाकर मंदिर में चारभुजा नाथ की सेवा करना, ऐसी कहीं बातें उन्हें संस्कृति के करीब ले आई. आम का पौधा घर में आनें के बाद नन्हे विष्णु का लालच बढा और अधिक पौधे पानें की लालसा नें उन्हें पौधे चौरी करना सिखा दिया…. कोई गाँव में दस पेड़ लगाता तो विष्णु को दो पौधे एवज में देकर जाता की खेत पर लगा रहा हूँ चुराना मत. पारिवारिक संस्कारों नें सन्यासियों के करीब लानें का काम किया…. और फिर संन्यास की और चल पड़े… तीन तिलक लगाना – चोटी रखना… घंटो साधना करना आदत सी बन गई… उसी दौराना टोंक में बनास नदी के किनारे संत कृष्णदास फलहारी बाबा के सानिध्य में आकर साधू दीक्षा लेनें की जिद्द करनें लगे लेकिन आश्रम के साधू ने यह कहते हुए साधू दीक्षा देनें से इनकार कर दिया की ‘तुम्हे बिन भगवा धारण किये ही बहुत बड़ा काम करना है’ |

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