जीते जी मातृभाषा राजस्थानी को मान्यता देख लूं : चूंडावत,97वें जन्मदिवस पर के.सी. मालू से प्रयास तेज किए जाने का आहवान

राजस्थानी भाषा की सुप्रसिद्ध लेखिका पद्मश्री रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ने कहा है कि उनका सपना है कि वे जीते जी इन आंखों से अपनी मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता देखें और उनका यह सपना अधूरा नहीं रहना चाहिए। ये भावपूर्ण उद्गार उन्होंने रविवार को अपने 97वें जन्मदिवस पर व्यक्त किए। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने इस अवसर पर बनीपार्क स्थित उनके निवास पर उन्हें शॉल ओढ़ाकर तथा पुष्पमाला पहनाकर सम्मानित किया और जन्मदिवस की बधाई दी। समिति के प्रदेशाध्यक्ष केसी मालू तथा अंतरराष्ट्रीय संगठक व संस्थापक लक्ष्मणदान कविया ने उनके दीर्घायु तथा स्वस्थ जीवन की कामना की। चूंडावत ने समिति पदाधिकारियों से राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन की गतिविधियों की जानकारी ली तथा मान्यता की दिशा में प्रयास तेज करने का आह्वान किया। इस अवसर पर संघर्ष समिति के आनन्दसिंह कविया व धनसिंह भी मौजूद थे।
गौरतलब है कि मेवाड़ राज्य के देवगढ़ ठिकाने में 24 जून 1916 को पिता रावत विजयसिंह तथा माता रानी नन्दकुंवर के आंगन में जन्मी चूंडावत का विवाह 1934 में वर्तमान हनुमानगढ़ जिले में स्थित रावतसर ठिकाने के रावत तेजसिंह के साथ हुआ। चूंडावत मूलत: कथाकार हैं तथा इनकी कहानियां इतनी सरस हैं कि पढ़ते हुए मन नहीं भरता। अब तक इनकी चालीस के करीब पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये किसी भी राजघराने की पहली महिला हैं जो परदे से बाहर आईं और कई प्रमुख राजनीतिक पदों को सुषोभित किया। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी-बीकानेर का सर्वोत्तम पुरस्कार महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार पाने वाली आप प्रथम महिला साहित्यकार हैं। 1984 में आपको भारत सरकार ने पद्मश्री से भी नवाजा।

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