वैक्सीन उत्पादन योजनाएं – क्या बदल रहा है?

हाल ही में सरकार ने कई नई योजना घोषित की हैं जिससे वैक्सीन बनाना तेज, सस्ता और देशी हो सके। अगर आप जानना चाहते हैं कि ये योजनाएँ कैसे काम करती हैं, तो नीचे पढ़िए—सभी जरूरी बात एक जगह।

मुख्य लक्ष्य और समय‑सीमा

सबसे पहले तो लक्ष्य को समझें। 2025 तक भारत को 2 बिलियन डोज़ वैक्सीन का उत्पादन करना है। इसका मतलब है कि हर साल लगभग 400 करोड़ डोज़ बनेंगे, जो विश्व में दूसरे नंबर पर है। सरकार ने तीन चरण तय किए हैं: 2023‑2024 में 1 बिलियन डोज़, 2024‑2025 में 1.5 बिलियन और 2025‑2026 में बाकी का पूरा करना।

समय‑सीमा के साथ जुड़े हुए हैं दो बड़े मैाइलस्टोन—पहला, सभी बड़े निर्माताओं को नई लाइनों में निवेश करने के लिए 6 महीने का समय देना, और दूसरा, उत्पादन शुरू होने के पहले दो महीनों में गुणवत्तापूर्ण टेस्टिंग पूरा करना। यह सब पारदर्शी रिपोर्ट के जरिए जनता को दिखाया जाएगा।

मुख्य खिलाड़ी और उनकी भूमिका

भारत में वैक्सीन बनाना अब सिर्फ एक या दो कंपनियों तक सीमित नहीं रहा। सरकारी और निजी दोनों खिले हैं। बीआरजी क्लिनिकल, सुश्री, पायलट, और बायोसैन जैसी कंपनियां अब मिलकर काम कर रही हैं। इनकी कुल क्षमता लगभग 800 मिलियन डोज़ की है, जो पहले के आंकड़ों से दोगुनी है।सरकार ने ‘इनोवेशन हब’ भी रन किया है जहाँ छोटे‑बड़े स्टार्ट‑अप्स को फंड, तकनीकी सहायता और टेस्टिंग सुविधा मिलती है। इससे नया वैक्सीन फॉर्मुलेशन जल्दी से बाजार में आ सकता है, चाहे वह COVID‑19 के बाद के बूस्टर हो या फिर नयी वायरल बीमारियों के लिए।

एक दिलचस्प पहल यह है कि कई कंपनियां अब ‘स्लाइस‑ऑफ‑प्रॉडक्शन’ मॉडल अपना रही हैं—जैसे कि एक कंपनी एंटीजन बनाती है, दूसरी उसे एडक्यूरेटर में डालती है, और तीसरी पैकेजिंग करता है। इससे हर कदम पर विशेषज्ञता का उपयोग होता है और उत्पादन तेज़ होता है।

सरकारी समर्थन भी कम नहीं है। उत्पादन लाइन्स में 50 % तक की टैक्स छूट, जमीन पर रियायती किराया और तेज़ लाइसेंस प्रक्रिया ने निवेशकों को आकर्षित किया है। इसके अलावा, राष्ट्रीय वैक्सीन फंड ने 5 000 करोड़ रुपये की फंडिंग दी है, जिससे छोटे प्लांट भी स्थापित हो रहे हैं।

अब बात करते हैं चुनौतियों की। कच्चे माल की सप्लाई, विशेषकर एडेनीवेम वाक़्त पर, कभी‑कभी बाधा बनती है। इसलिए सरकार ने विदेशी सप्लायरों के साथ दीर्घकालिक कॉन्ट्रैक्ट किए हैं और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ‘सीड फंड’ निकाला है। दूसरा मुद्दा है क्वालिटी कंट्रोल—हर बैच को WHO मानकों के अनुसार टेस्ट करना अनिवार्य है, इसलिए टेस्ंग लैब्स की संख्या दुगुनी की जा रही है।

आपके लिए क्या मतलब है? अगर आप वैक्सीन की उपलब्धता या लागत की बात कर रहे हैं, तो ये नई योजनाएं दवाओं को सस्ते और जल्दी उपलब्ध कराएंगी। अधिक उत्पादन का मतलब है कमी कम होना और कीमत घटना। साथ ही, घरेलू उत्पादन से आयात पर निर्भरता घटेगी, जिससे सप्लाई चेन की स्थिरता बनी रहेगी।

संक्षेप में, भारत की वैक्सीन उत्पादन योजनाएं बड़े लक्ष्य, स्पष्ट समय‑सीमा और कई नए खिलाड़ी लाकर स्वास्थ्य सुरक्षा को मजबूत बना रही हैं। यदि आप स्वास्थ्य, बीमा या फार्मा सेक्टर में काम करते हैं, तो इन योजनाओं को करीब से फॉलो करना फायदेमंद रहेगा—क्योंकि यह आपके व्यवसाय या दैनिक जीवन पर सीधा असर डालने वाली चीज़ है।

शीर्ष अदालत में याचिका मांगती है वैक्सीन उत्पादन योजनाएं, मूल्य सीमा?

मेरे अनुसार, शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई है जिसमें वैक्सीन उत्पादन योजनाओं की मांग की गई है। इस याचिका में वैक्सीन की कीमतों पर भी सीमा लगाने की मांग की गई है। इसका मुख्य उद्देश्य वैक्सीन को हर व्यक्ति के लिए सुलभ बनाना है। याचिका में यह भी बताया गया है कि वैक्सीन की कमी के कारण ही देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। अतः, यह महत्वपूर्ण है कि वैक्सीन उत्पादन बढ़ाया जाए और कीमतों पर भी नियंत्रण रखा जाए।

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