स्कूल बैग बच्चों के लिए बिमारियों का घर, वजन से कमरदर्द,कूबडापन बढ़ रहा हैं

Research Desk  स्कूल बैग आपके बच्चों के लिए बिमारियों का घर बनता जा रहा हैं। बच्चे स्कूल बैग के बोझ  तले दबे जा रहे हैं । यही बोझ बच्चो में गंभीर बिमारियों को न्यौता दे रहा हैं। एक सर्वे में यह चौकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं। सर्वे में 14 वर्ष से कम उम्र के लगभग 80 फीसदी बच्चो में स्कूलबैग के कारण कमर दर्द और कुबडेपन के लक्षण दिखाई दिए हैं।  एसोसिएटिड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) के तहत हेल्‍थकेयर कमेटी ने रिसर्च की हैं। इस रिसर्च में  स्कूल बैग  के कारण भारत के  13 साल तक की उम्र के लगभग 70 फीसदी बच्चे हल्का कमर दर्द की होने की बाते सामने हैं यही दर्द लगातार रहने के बाद कुबडेपन में तब्दिल हो रहा हैं।

स्कूब बैग के भारी होने के कारण

सर्वे में सात वर्ष से तेरह वर्ष तक के नब्बे फीसदी बच्चों के बस्तो का वजन, आर्ट किट, स्केसट्स, स्विमबैग, किक्रेट किट, ताइकांडों किट्स का वजन बच्चो के बस्ते का भार बढा रह हैं।

स्कूल बैग बच्चों की रीढ़ पर असर डाल रहा हैं

एसोचैम की हेल्थ कमेटी के चेयमैन राव का कहना है कि बैग के बोझ के कारण बच्चे स्लिप डिस्क से शुरूआत होती है और फिर  स्पॉन्डिलाइटिस, स्पोंडिलोलिस्थीसिस, लगातार पीठ में दर्द की शिकायत, रीढ़ की हड्डी में दर्द जैसी समस्याओं से रुबरु होना पड़ता हैं।

स्कूल बैग का वजन उनके वजन का 10 % हो

चिल्ड्रंस स्कूल बैग एक्ट 2006 के मुताबिक, बच्चों के स्कूल बैग बच्चे के वजन से 10 फीसदी तक हो सकता हैं। जबकि नर्सरी से प्ले स्कूल के बच्चों को स्कूल बैग ले जाने ही मनाही है. नर्सरी और प्ले स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चो के लिए अलग मापदंड बनाए गए हैं। यह जिम्मेदारी राज्य सरकार के शिक्षा विभाग पर है कि स्कूलो का निरीक्षण कर लॉकर उपलब्ध करवाए जाए।

बच्‍चों के विकास में आएगी बाधा-

कम उम्र में ज्यादा वजन का बोझ बच्‍चों की रीढ़ की हड्डी में विकार पैदा कर सकती हैं। लगातार वजन के चलते बच्चो में तनाव और मांसपेशियों में विकास को रोकता हैं। भारी बस्ता बच्चों के कंधों  और आसपास की हड्डियो और खून के दौरे मे रुकावट पैदा करता हैं।

इन शहरों में हुई रिसर्च

ये रिसर्च देश के दस शहरों दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई,जयपुर, बैग्लोर, लखनऊ, मुंबई, पुणे,हैदराबाद,अहमदाबाद, देहरादून में 2500 से अधिक बच्चों और हजार से अधिक अभिभावकों पर की गई.

 

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