अगस्त और सितंबर 2025 में, भारत के कई मेडिकल कॉलेजों में रेजिडेंट डॉक्टरों ने महीने भर में 540 घंटे काम किया — यानी हर सप्ताह 135 घंटे। ये संख्या एम्स के नियमों के मुताबिक अनुमत घंटों (48 घंटे सप्ताह, 192 घंटे मासिक) की तीन गुना से भी ज्यादा है। ये केवल थकान नहीं, बल्कि एक जानलेवा शोषण है। जब डॉक्टर खुद बिना नींद के 36 घंटे तक चलते हैं, तो रोगी की जान किसके हाथ में है? यह सवाल अब सिर्फ डॉक्टरों के लिए नहीं, बल्कि हर भारतीय के लिए है।
सुप्रीम कोर्ट का नोटिस और यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट की लड़ाई
यह शोषण अब सिर्फ अंदरूनी शिकायत नहीं रहा। डॉ. लक्ष्य मित्तल, यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट (UDF) के अध्यक्ष, ने अगस्त 2025 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। उनका आरोप: 1992 के सुप्रीम कोर्ट निर्देशों के बावजूद, मेडिकल संस्थान आज भी बिना किसी दंड के काम के घंटों का उल्लंघन कर रहे हैं। और जवाब में? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियों को नोटिस जारी किया। ये नोटिस सिर्फ एक कागज नहीं — ये एक चेतावनी है कि अब अनदेखा नहीं चलेगा।
एम्स का आदेश, लेकिन अस्पतालों में फर्जी रोस्टर
21 अगस्त 2025 को, एम्स (All India Institute of Medical Sciences) ने एक आदेश जारी करके 1992 के नियमों को दोहराया। लेकिन वास्तविकता क्या है? कई मेडिकल कॉलेजों ने अब ड्यूटी रोस्टर बनाने से बचने शुरू कर दिए। कुछ अस्पतालों में फर्जी रोस्टर बनाए जा रहे हैं — जहां रिकॉर्ड में 48 घंटे लिखे हैं, लेकिन वास्तव में डॉक्टर 120 घंटे तक काम कर रहे हैं। एक रेजिडेंट ने हमें बताया: "हमारा नाम उस रोस्टर पर है जहां हम आज नहीं थे। हम तो रात भर ऑपरेशन थिएटर में थे।" ये झूठ नहीं, ये अपराध है।
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन: डॉक्टर की गरिमा, रोगी की सुरक्षा
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (DMA) ने स्पष्ट किया: "मानवीय ड्यूटी घंटे सिर्फ डॉक्टर कल्याण के बारे में नहीं हैं। वे रोगी सुरक्षा के बारे में हैं।" एक थका हुआ डॉक्टर एक चिकित्सा जोखिम है। एक अनुभवी सर्जन ने कहा, "मैंने अपने दो रेजिडेंट्स को बार-बार बताया — जब तुम थक जाओ, तो गलती करने का खतरा बढ़ जाता है। एक गलत दवा की खुराक, एक गलत निदान — ये जिंदगी बदल सकता है।" DMA ने सभी दिल्ली के टीचिंग अस्पतालों के लिए नियमित ऑडिट की मांग की है। लेकिन कौन ऑडिट करेगा? और कौन जिम्मेदार होगा?
आरटीआई से उजागर हुआ जाल: शिक्षा की बीमारी, स्वास्थ्य की आपदा
यह मामला सिर्फ घंटों का नहीं है — ये एक पूरी प्रणाली की बीमारी है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, और राज्य स्तरीय निदेशालयों ने आरटीआई के जरिए जो सूचनाएं छिपाईं, वो डरावनी हैं। कुछ मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों के लिए परामर्श सेवाएं नहीं हैं। कुछ में रेजिडेंट्स को एक साल में 10 दिन छुट्टी दी जाती हैं। एक स्वतंत्र न्यूजरूम, 'द मूकनायक', की संपादक मीना कोटवाल कहती हैं: "जब मेडिकल शिक्षा ही बीमार हो, तो जनस्वास्थ्य का क्या होगा?" ये सवाल अब राष्ट्रीय स्तर पर उठ रहा है।
सीबीआइ की जांच और घोटाले: केंद्रीय अधिकारी भी शामिल
इस शोषण के पीछे सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि व्यापक घोटाला भी है। सीबीआइ (Central Bureau of Investigation) ने 2025 में सात राज्यों के 35 आरोपियों पर मुकदमा दर्ज किया। इनमें से कुछ नाम केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और एनएमसी के अधिकारियों के हैं। घोटाले में शामिल हैं: अनुमति देने के बदले रिश्वत, अयोग्य अस्पतालों को मान्यता, और रेजिडेंट्स के लिए ड्यूटी रोस्टर बनाने का झूठ। ये नहीं कि डॉक्टर थक रहे हैं — ये कि प्रणाली खराब हो चुकी है।
एनएमसी का नया मसौदा: सुधार या सिर्फ नए नियम?
एनएमसी ने अप्रैल 2025 में पीजीएमईआर (पीजी मेडिकल शिक्षा विनियम संशोधन 2025) का मसौदा जारी किया। इसके तहत विभागाध्यक्षों का कार्यकाल तीन वर्ष तक तय किया गया है — और यह पद रोटेशन के आधार पर बदलेगा। लेकिन ये सुधार है या सिर्फ एक नए शीर्षक के नीचे पुरानी बुराइयां छिपाने की कोशिश? अधिसूचना के तहत सुझाव देने की अंतिम तारीख 2 जुलाई 2025 थी। लेकिन क्या कोई रेजिडेंट डॉक्टर ने इसमें आवाज उठाई? क्या कोई उनकी आवाज सुनी गई?
क्या होगा अगला कदम?
अब सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद, अगले तीन महीनों में एक ऐतिहासिक सुनवाई होगी। यह निर्णय न सिर्फ रेजिडेंट्स के लिए, बल्कि पूरी भारतीय चिकित्सा प्रणाली के भविष्य को तय करेगा। क्या हम एक ऐसी प्रणाली बनाएंगे जहां डॉक्टर थके हुए न हों, बल्कि उनकी ऊर्जा रोगियों के लिए खर्च हो? या फिर, एक बार फिर, नियमों को दीवार पर लटका दिया जाएगा?
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
रेजिडेंट डॉक्टर्स को कितने घंटे काम करने की अनुमति है?
एम्स और 1992 के सुप्रीम कोर्ट निर्देशों के अनुसार, एक रेजिडेंट डॉक्टर को सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे और मासिक 192 घंटे काम करने की अनुमति है। हालांकि, अगस्त-सितंबर 2025 में आरटीआई डेटा के अनुसार, कई कॉलेजों में यह संख्या 540 घंटे (मासिक) तक पहुंच गई — जो नियम का तीन गुना है।
एनएमसी का नया पीजीएमईआर मसौदा क्या बदलाव लाता है?
पीजीएमईआर 2025 के मसौदे के तहत, विभागाध्यक्षों का कार्यकाल तीन वर्ष तक सीमित किया गया है, और यह पद वरिष्ठता के आधार पर रोटेशन के साथ बदलेगा। लेकिन इसमें ड्यूटी घंटों, आराम के नियमों या मानसिक स्वास्थ्य समर्थन के लिए कोई नया प्रावधान नहीं है — जो वास्तविक समस्या है।
ड्यूटी घंटों के उल्लंघन से रोगियों को क्या खतरा है?
शोधों के अनुसार, 24 घंटे से अधिक लगातार काम करने वाले डॉक्टरों में निदान त्रुटियों में 36% वृद्धि होती है। एक थका हुआ डॉक्टर दवाओं की खुराक गलत दे सकता है, ऑपरेशन में गलती कर सकता है, या जरूरी लक्षण नजरअंदाज कर सकता है। ये सिर्फ आंकड़े नहीं — ये जिंदगियां हैं।
क्या आरटीआई ने इस मामले में कोई असली बदलाव लाया है?
हां। आरटीआई के जरिए जो सूचनाएं निकाली गईं, उन्होंने फर्जी रोस्टर, अनुमति घोटाले और अधिकारियों की लापरवाही को सामने लाया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया, और कुछ अस्पतालों ने अस्थायी रूप से घंटे कम किए। लेकिन ये सिर्फ शुरुआत है — अभी तक कोई अधिकारी जिम्मेदार नहीं हुआ।
क्या भारत में डॉक्टरों की भाड़ कम हो रही है?
नहीं। वास्तव में, डॉक्टरों की भाड़ बढ़ रही है। 2024 के एनएमसी आंकड़ों के अनुसार, 32% रेजिडेंट्स ने अपने दूसरे वर्ष में छोड़ दिया। दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में 2025 में एक बार में 17 रेजिडेंट्स ने इस्तीफा दे दिया। वजह? थकान, अपमान और यह महसूस करना कि उनकी जिंदगी किसी के लिए कोई नहीं है।
सामान्य जनता इस मामले में क्या कर सकती है?
आप अपने अस्पताल में जाकर रेजिडेंट्स से बात कर सकते हैं। अगर किसी डॉक्टर को लगता है कि वह अत्यधिक घंटे काम कर रहा है, तो आप आरटीआई के जरिए ड्यूटी रोस्टर मांग सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें: एक थका हुआ डॉक्टर आपके लिए भी खतरा है। आपकी आवाज — यही असली बदलाव की शुरुआत है।