GST दर सूची 2025: आम जरूरतों पर बड़ी राहत, लक्जरी और ‘सिन’ गुड्स पर 40% टैक्स
- द्वारा अनिर्विष रचनाकार
- सित॰, 9 2025

नवरात्रि के पहले दिन, 22 सितंबर 2025 से टैक्स मैप बदल जाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की है कि देश भर में GST का सबसे बड़ा रीसेट 2017 के बाद पहली बार लागू होगा—दो प्रमुख स्लैब, 5% और 18%, पूरे बाजार की धड़कन तय करेंगे और लक्जरी/डि-मेरिट श्रेणी के लिए 40% का नया स्लैब बनेगा। यह बदलाव रोजमर्रा के बजट से लेकर ऑटो, इलेक्ट्रॉनिक्स और उद्योग तक, लगभग हर जेब और हर सेक्टर को प्रभावित करेगा। GST दर सूची 2025 का मकसद है कम दरों से खपत बढ़ाना, अनुपालन सरल करना और टैक्स स्ट्रक्चर को स्पष्ट बनाना।
सबसे बड़ी राहत—कई जरूरी और उपभोक्ता सामान 18% से घटकर 5% पर आएंगे। 12% और 28% स्लैब खत्म होंगे। जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा जैसी आवश्यक सेवाएं 0% या निल दर पर जाएंगी। दूसरी ओर, लक्जरी और ‘सिन’ गुड्स के लिए 40% का नया डि-मेरिट स्लैब बनेगा। सरकार ने कीमतों में कमी का लाभ ग्राहकों तक पहुंचे, इसके लिए 400 से ज्यादा आइटम की कीमतें ट्रैक करने की योजना बनाई है।
क्या बदलेगा: स्लैब, दरें और छूट
नई संरचना का फोकस दरों की तादाद घटाकर विवाद और भ्रम कम करना है। मौजूदा 12% और 28% हटाकर सामान/सेवाओं का बड़ा हिस्सा 5% या 18% में समायोजित होगा। कुछ मुख्य बदलाव:
- दो-स्लैब कोर स्ट्रक्चर: 5% और 18%।
- नया 40% डि-मेरिट स्लैब: लक्जरी और ‘सिन’ कैटेगरी के लिए।
- 0%/निल: जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा जैसी आवश्यक सेवाएं।
जो सामान सस्ते होंगे—नीचे की दर में शिफ्ट:
- FMCG/ग्रॉसरी: चॉकलेट, हेयर ऑयल, शैंपू, साबुन, ओरल केयर प्रोडक्ट्स, बिस्कुट, मिनरल वाटर—18% से 5%।
- फूड आइटम: जिन पर पहले 18% लगता था, अब 5%।
- ड्राई नट्स/ड्राई फ्रूट्स: 12%-18% से घटकर 5%।
- ऑटो सेक्टर: डीज़ल कारें (1500cc तक), पेट्रोल कारें (1200cc तक), 350cc तक की मोटरसाइकिलें और थ्री-व्हीलर्स—28% से 18%।
- ऑटो पार्ट्स/एग्री-इक्विपमेंट: टायर्स, कृषि डीज़ल इंजन, बंपर, ब्रेक्स, गियरबॉक्स—18% से 5%।
- व्हाइट गुड्स/इलेक्ट्रॉनिक्स: एसी, डिशवॉशर, 32 इंच से बड़े टीवी, मॉनिटर, प्रोजेक्टर—28% से 18%।
- इंडस्ट्रियल इनपुट्स: सीमेंट, थर्मामीटर, इंस्ट्रूमेंट्स/एपरेटस, सल्फ्यूरिक/नाइट्रिक एसिड, अमोनिया—दर में कमी।
- फुटवेयर: 2,500 रुपये से ऊपर प्रति जोड़ी अब 5%।
- ब्यूटी/फिजिकल वेल-बीइंग से जुड़ी कुछ सेवाएं: 5% स्लैब में।
जो आइटम महंगे होंगे—ऊपर की दर में शिफ्ट:
- लक्जरी और डि-मेरिट/‘सिन’ गुड्स: 40% का नया स्लैब।
- छूट/टाइमलाइन: सिगरेट, जर्दा जैसे च्यूइंग टोबैको, अनमैन्युफैक्चर्ड टोबैको और बीड़ी पर फिलहाल मौजूदा GST+सेस जारी रहेगा; इन पर नई दरें बाद में अधिसूचित होंगी।
कीमतों पर निगरानी और पास-थ्रू:
- केंद्र और राज्यों की अप्रत्यक्ष कर एजेंसियां मौजूदा MRP/ट्रेड कीमतों का बेसलाइन डेटा बना रही हैं ताकि दर घटने का फायदा ग्राहकों तक पहुंचे।
- रेट कट के बाद “प्राइस मॉडिफिकेशन” की रिपोर्टिंग और तुलना होगी—किस आइटम पर कितना कम हुआ, इसका मिलान किया जाएगा।
प्रैक्टिकल असर—जेब में कितना फर्क?
- शैंपू की 200 रुपये की बोतल: पहले 18% पर 36 रुपये टैक्स लगता था; अब 5% पर करीब 10 रुपये। सीधी बचत ~26 रुपये।
- एसी (उदाहरण कीमत 35,000 रुपये): 28% पर टैक्स ~9,800 रुपये; 18% पर ~6,300 रुपये। लगभग 3,500 रुपये की राहत (डीलर मार्जिन/छूट अलग)।
- 350cc से नीचे मोटरसाइकिल (उदाहरण एक्स-शोरूम 1,20,000): 28% की जगह 18% होने से टैक्स बोझ घटेगा; ऑन-रोड कीमत में उल्लेखनीय कमी आएगी (RTO/बीमा अलग)।

किसे क्या फायदा-नुकसान: सेक्टर-वाइज असर और कीमतों का गणित
FMCG: 5% स्लैब में आने से पैकेज्ड रोज़मर्रा सामान की बास्केट सस्ती होगी। वॉल्यूम-ड्रिवन कंपनियों को डिमांड बढ़ने का फायदा मिल सकता है। रिटेलर्स को पुराने स्टॉक की री-लेबलिंग और नए बिलिंग रेट्स अपनाने की तैयारी करनी होगी।
कंज्यूमर ड्यूरेबल्स/इलेक्ट्रॉनिक्स: एसी, बड़े टीवी, डिशवॉशर जैसे प्रोडक्ट 28% से 18% पर आने से त्योहारों की बिक्री को बूस्ट मिल सकता है। वॉरंटी/AMC सेवाओं की टैक्स ट्रीटमेंट समान रहे तो कुल ओनरशिप कॉस्ट भी कम दिखेगी।
ऑटोमोबाइल: छोटे/मिड-साइज पेट्रोल-डीज़ल कारें और 350cc तक की बाइक्स 18% पर आने से एंट्री और मिड सेगमेंट में मांग उछलने की उम्मीद है। थ्री-व्हीलर्स और कृषि इंजनों पर रेट कट ग्रामीण ट्रांसपोर्ट और खेती-किसानी की लागत पर सकारात्मक असर डाल सकता है।
हैंडिक्राफ्ट्स/कला: कम दरें कारीगरों की कमाई और बाजार पहुंच बढ़ा सकती हैं। ब्रांडिंग और ई-कॉमर्स चैनलों के साथ, ग्राम/क्लस्टर आधारित यूनिटों को बेहतर मार्जिन मिलना संभव है।
इंडस्ट्रियल इनपुट्स/सीमेंट: दर कटौती से निर्माण और मैन्युफैक्चरिंग की लागत पर राहत दिखेगी। इन्फ्रास्ट्रक्चर और रियल एस्टेट में पर्सक्वायरफुट कॉस्ट नीचे आ सकती है, बशर्ते सप्लाई चेन पूरी तरह पास-थ्रू करे।
बीमा/हेल्थकेयर: जीवन और स्वास्थ्य बीमा पर 0%/निल GST के चलते वार्षिक प्रीमियम घटेंगे। इससे पहली बार बीमा खरीदने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा और रिन्यूअल रेट बढ़ सकते हैं।
MSME/अनुपालन: कम स्लैब और स्पष्ट रेट-मैपिंग से क्लासिफिकेशन विवाद घटेंगे। ई-इनवॉइस/रिटर्न फाइलिंग के डिजिटल प्रोसेस के साथ तेज रिफंड का वादा छोटे उद्यमों की कैश-फ्लो दिक्कत कम कर सकता है।
राज्य राजस्व और 40% डि-मेरिट स्लैब: लक्जरी/‘सिन’ गुड्स पर उच्च दर राज्यों की हिस्सेदारी और कुल संग्रह को बैलेंस करने का टूल बनेगी। दरें बढ़ने से डिमांड थोड़ी सॉफ्ट हो सकती है, पर नेट-रेवेन्यू स्थिर रखने में मदद मिलेगी।
क्या खरीदें—कब खरीदें?
- जिन आइटम पर 18% से 5% आ रहा है (जैसे शैंपू, साबुन, बिस्कुट, ड्राई फ्रूट्स), 22 सितंबर के बाद खरीदने पर ज्यादा फायदा होगा।
- AC, बड़े टीवी, डिशवॉशर और 28% से 18% में शिफ्ट आइटम की खरीद उत्सव सीजन के साथ अधिक किफायती पड़ेगी।
- वाहन खरीद में रेट कट का फायदा एक्स-शोरूम पर दिखेगा; ऑन-रोड प्रभाव RTO/बीमा पर निर्भर रहेगा—डीलर से टैक्स ब्रेकअप मांगें।
दाम घटने का फायदा आपको कैसे मिले—आसान चेकलिस्ट:
- इनवॉइस में GST दर और राशि अलग से देखें—पुराने स्टॉक पर नए टैक्स से MRP/डील प्राइस समायोजित है या नहीं, पूछें।
- रिटेलर/डीलर से “रेट-रिडक्शन पास-थ्रू” का लिखित ब्रेकअप लें, खासकर हाई-वैल्यू खरीद पर।
- ऑनलाइन/ऑफलाइन दोनों जगह कीमतों की तुलना करें—त्योहारी ऑफर्स और टैक्स कट का डबल इफेक्ट मिल सकता है।
बिजनेस के लिए टू-डू:
- ERP/POS में नई दरें अपडेट करें; प्राइस-लिस्ट, कैटलॉग, वेबसाइट/ऐप पर सही टैक्स दिखे।
- पुराने MRP वाले स्टॉक के लिए प्राइस-स्टिकर/री-लेबलिंग की वैधानिक गाइडलाइंस के मुताबिक तैयारी रखें।
- कॉन्ट्रैक्ट्स/पर्चेज ऑर्डर में टैक्स क्लॉज़ रिवाइज करें ताकि सप्लाई चेन में विवाद न हो।
- कस्टमर-कम्युनिकेशन: “नए रेट—नई कीमत” संदेश साफ-साफ दें, ताकि विश्वास बने और डिमांड बढ़े।
टाइमलाइन और अपवाद:
- नई दरें 22 सितंबर 2025 से प्रभावी।
- तंबाकू श्रेणी के कुछ उत्पाद—सिगरेट, जर्दा/च्यूइंग टोबैको, अनमैन्युफैक्चर्ड टोबैको, बीड़ी—पर फिलहाल मौजूदा दरें/सेस जारी; नए स्लैब का लागू होना बाद में अधिसूचित होगा।
बड़ी तस्वीर साफ है: सरल स्लैब, कम दरों पर रोजमर्रा की राहत, और लक्जरी/डि-मेरिट पर सख्ती। सरकार कीमतों पर कड़ी नजर रखने की रणनीति के साथ उतरी है, ताकि टैक्स कट का असर बिल में दिखे और खपत-निवेश की रफ्तार तेज हो।