June 03, 2014

कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में दो बार जाट मुंख्यमंत्री बनाना चाहती थी. जाट मुख्यमंत्री ? पुस्तक में जिक्र

By admin - Wed Aug 29, 7:39 pm

29 aug jaipur

राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में हलचल पैदा करने वाली किताब जाट मुख्यमंत्री ? में वरिष्ठ पत्रकार सत्य पारीक ने जिक्र किया है, कि राजस्थान के इतिहास में दो बार ऐसे अवसर आए जिनमें कांग्रेस हाईकमान की इच्छा होने के बाद भी कूटनीति के चलते जाट मुख्यमंत्री नही बन पाए. इतिहास की घटनाओ का जिक्र करते हुए किताब में लिखा है कि कांग्रेस नेता हरदेव जोशी और नाथूराम मिर्धा ने एक दुसरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए न केवल पार्टी में बल्कि अन्य विकल्पो को इस्तेमाल कर राजनीति में एक मिसाल कायम.

पहला मौका
जाट नेता नाथूराम मिर्धा ने हरदेव जोशी से अपनी दोस्ती उस वक्त निभाई,जब मुख्यमंत्री बरकतउल्ला खां के निधन के बाद मुख्यमंत्री का निर्वाचन होना था उस समय काग्रेस की पावरफुल अध्यक्ष श्रीमती इदिरा गांधी ने अपने पंसद के केंद्रीय राज्य मंत्री रामनिवास मिर्धा को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर जयपुर भेजा ,इस बाबत सूचना प्रदेश कांग्रेस को भी पहुचाई गई थी. लेकिन सूचना के बाद नाथूराम मिर्धा , हरदेव जोशी ने मिलकर गवर्मेंट होस्टल ( आजकल पुलिस आयुक्त मुख्यालय ) में कांग्रेस विधायक दल की बैठक आयोजित की जिसमें हरदेव जोशी का नाम सर्वसम्मति से विधायक दल के नेता घोषित किए गए. जिसका पत्र राज्यपाल को नाथूराम ने स्वमं जाकर दिया. इसी बीच रामनिवास मिर्धा का आगमन जयपुर के सांगानेर हवाईअड्डे पर हो गया ,जिन्हे जयपुर के एसपी और कलेक्टर ने सूचित किया कि कांग्रेस विधायक दल के नेता हरदेव जोशी को चुन लिया गया है यह सुनकर रामनिवास मिर्धा घर चले गए

अगले दिन राजभवन में आयोजित मंत्रीमंडल के शपतग्रहण समारोह में हरदेव जोशी ने मुंख्यमंत्री पद की शपत लेने के बाद रामनिवास मिर्धा का नाम पुकारा ,लेकिन वे उपस्थित नही थे इस कारण उन्हे जोशी मंत्रीमंडल में नम्बर दो का पद नही मिला.

दुसरा मौका

जोशी को मुख्यमंत्री का पद नाथूराम मिर्धा की कूटनीति के कारण मिला अहसान जोशी ने जनता दल की भाजपा के समर्थन से बनी केंद्र सरकार के समय चुकाया, उस समय राज्य में जनता दल 55 विधायक काग्रेस के 50 विधायक चुनाव जीत कर आए थे दोनो को मिलाकर सरकार बनाने लायक संख्या हो गई थी.इस समय जोशी ने नाथूराम मिर्धा की जनता दल सरकार बनाने के लिए पार्टी अध्यक्ष राजीव गाँधी से सलाह मश्वरा कर तय किया कि नाथूराम मिर्धा को मुंख्यमंत्री बनाकर सरकार को काग्रेस बाहर से समर्थन देगी. इसकी सूचना मिलने के बाद भाजपा नेता भैंरो सिंह शेखावत सक्रिय हुए,उल्लेखनीय है कि जनता दल और भाजपा ने उस समय केंद्र और राज्यो में मिलकर चुनाव लडा था इस कारण शेखावत को जनता दल का समर्थन मिलना तय था क्योकि जनता दल की केंद्र में वी पी सिंह के नेतृत्व में गठित होने वाली सरकार को भाजपा बाहर रहकर समर्थन कर रही थी. शेखावत इसका राजनीतिक लाभ उठाते हुए लालकृष्ण आडवाणी से होने वाले प्रधानमंत्री वीपी सिंह से राजस्थान में सरकार बनाने का दबाव बनाने में कामियाब हो गए.वीपी सिंह के दबाव से नाथूराम मिर्धा का मुंख्यमंत्री बनने का सपना सच नही हो सका .

इस तरह से एक अवसर उस समय मिला जब रथयात्रा के मुद्दे पर भाजपा ने वीपी सिंह सरकार को दिया समर्थन वापस ले लिया, जिसके कारण राजस्थान में भी जनतादल और भाजपा गठबंधन सरकार गिर गई. ऐसी स्थिती में एक बार फिर से जोशी और नाथूराम मिर्धा ने सरकार बनाने का प्रयास किया लेकिन जनता दल के 55 विधायको में दो फाड हो गए.इसी कारण से एक बार फिर मिर्धा मुंख्यमंत्री बनने से रह गए ..

उपरोक्त राजनीतिक घटनाओ के बाद राजनीतिक हल्को में यह भी सवाल उठा कि जाट मुंख्यमंत्री बनाए जाने के मुद्दे अन्य जातियो के नेता सक्रिय भूमिका क्यो नही निभाना चाहते थे .

जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार सत्य पारीक ने इंडिया प्राइम प्रतिनिधि देवेन्द्र सिंह को बताया

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