हैल्थ डेस्क । दीमक की वजह से रणथम्भौर टाईगर रिजर्व जिन्दा है और दीमक इस रिजर्व के इको सिस्टम को बनाये रखने में इनकी अहम भूमिका है। भारत में कोई छिपकली की प्रजाति जहरीली नहीं होती। कबूतर भारतीय पक्षी नही और कबूतर की वजह से गौरेया के समूह दूसरे क्षेत्रों में चले जाते है ।वन्य जीव प्रजातियां लुप्त होने के कारण वन्य जीवों को प्रसंस्कृत व पका खाना है । इसके कारण कोई पुण्य नहीं मिल रहा बल्कि इससे पक्षी, उनके अण्डे यहाॅं तक की चींटियां तक मर जाती हैं ।
सूखा या गीला आटा या रोटी खिलाने से चींटियां व मछलियां मर जाती हैं । सांप कभी दूध नहीं पीता, भूखा मरता हुआ पीयेगा तो 24 धन्टे में मर जायेगा
सांप स्वंय की सुरक्षा के लिये हमला करते हैं अन्यथा कुछ नहीं करते । एक सांप अपने जीवन काल में देष की सामान्य धरेलू उत्पादन में 20 लाख रूपये का योगदान देता है ।
ऐसै ही कई अजीब तथ्यों से अवगत करवाया गया जयपुर में आयोजित कार्यशाला में ’दक्षिणी राजस्थान की जैव विविधता सत्र में डाॅ0 सतीश शर्मा ने इस क्षेत्र पक्षियों व पेड़ों की प्रजातियों, इको टूरिज्जम साईटस, पुल-पुलियांओ,झरनों, बर्ड फेयर, नाल व खोह, राॅक पेन्टिग्स, बोखा टाईगर की समाधि व वनवासियो की परम्पराओं उनकी भूमिका और वन्य जीवों की पर्यावरणीय सेवा आदि के बारे में रूचिकर प्रस्तुतिकरण दिया व कहा कि वन्य पक्षियों को पाल कर हम उनका कोई भला नहीं करते है। अगर वे जगंल में रहें तो इनका कुनबा स्वतः बढ़ता रहेगा ।
कार्यशाला में डाॅ प्रहलाद दूबे ने राजस्थान की चम्बल लैण्डस्केप में उपलब्ध जैव विविधता की खूबसूरती व मुकेष पंवार ने राजस्थान में तितलियों के प्रजातियों व उनकी जैव विविधता व खाध्य श्रंखला को बनाये रखने में उनकी भूमिका पर अपने अनुभव साझा किये । प्रत्येक सत्र के अन्त में प्रतिभागियों ने विषय विषेषज्ञों के समक्ष अनेक जिज्ञासाए रखी जिनका समाधान बताया व अनेक पेड़-पौधों व वन्य जीवों के बारे में व्याप्त भ्रांतियों व धारणाओं को दूर किया ।