लेखक अनिल सक्सेना “अन्नी” मुझे उन लोगो से सख़्त ऐतराज है जो किसी की कमाई पर अपनी नज़रे गड़ाए बैठे रहते है। खुद से तो कुछ होता जाता है नही और बेचारा जो रात दिन अपने परिवार को पालने के लिए मेहनत कर रहा हो उससे जल जल कर खुद को भूनने मे अपना समय बर्बाद करते रहतें हैं. अब हमारे मुहल्ले के डॉक्टर साब को ही देखिये सुबह से शाम तक मरीजों की सेवा मे अपने आप को खपाए रखते है। फिर भी न जाने क्यों, कुछ कूड़ मगज…