व्यंग्य : धाक धिना धिन, बाबा जी के बाबा

anil saxena

अनिल सक्सेना “अन्नी”  हमारी कालोनी में एक किराने की दुकान है। बीस साल से वहीं से घर का सामान लाया जा रहा है।घर जैसे सम्बंध हो जाने के कारण, दुकानदार हमें बड़ी उदारता से उधारी दे देता है।इन सम्बन्धों का कभी कभी जायज़ फ़ायदा उठाकर, हम उधार की EMI भी उससे बँधवा लेते हैं। दुकानदार जिसका नाम केसर प्रसाद है, उसके एक पिता जी होते थे,मेरा मतलब पिता जी हैं। “थे” और “है” से हमारा अभिप्राय यह है कि पाँच साल पहले वो भी अपने बेटे का हाथ दुकानदारी में हाथ…

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