व्यंग्य : धाक धिना धिन, बाबा जी के बाबा

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अनिल सक्सेना “अन्नी” anil-sexsena-anni

हमारी कालोनी में एक किराने की दुकान है। बीस साल से वहीं से घर का सामान लाया जा रहा है।घर जैसे सम्बंध हो जाने के कारण, दुकानदार हमें बड़ी उदारता से उधारी दे देता है।इन सम्बन्धों का कभी कभी जायज़ फ़ायदा उठाकर, हम उधार की EMI भी उससे बँधवा लेते हैं।

दुकानदार जिसका नाम केसर प्रसाद है, उसके एक पिता जी होते थे,मेरा मतलब पिता जी हैं। “थे” और “है” से हमारा अभिप्राय यह है कि पाँच साल पहले वो भी अपने बेटे का हाथ दुकानदारी में हाथ बटवाते थे फिर अचानक अंतरध्यान हो गये।हम पहले दिन से ही उन्हें बाबा जी कहते थे।जब हमने केसर से बाबा जी के बारे में जानना चाहा तो उसने एक लाइन में यह कहकर बात समाप्त कर दी कि बाऊ जी मोक्ष मार्ग की तलाश में गए हैं।ज़्यादा कुरेदा तो बोला भैया हमें भी बस इतना ही पता है। इससे अधिक ना हमने कुछ पूछा ना ही पिता जी ने बताया।फिर बात आई गयी हो गयी।पर कल पाँच साल बाद बाबा जी फिर अचानक से प्रकट हो गये।उनका चेहरा मोहरा देखकर हम अचम्भित रह गये। माथे पर त्रिशूलनुमा चंदन का टीका दमक रहा था।झकाझक सफ़ेद कुर्ता पायजमा और हाथ की कलाई में बड़े मनके की रुद्राक्ष की माला पहने हुए थे।

हमें उम्मीद थी कि चेहरे पर तेज चमचमा रहा होगा पर इसके विपरीत जब चेहरे पर नज़र गई तो वो मुरझाए गुलाब की तरह दीखाई दिया।आजकल पैर की जगह घुटने छूने की परम्परा चल निकली है इसलिए हमने भी बिना समय गँवायें उनके घुटनों को छूकर चरण स्पर्श किया और पूछा कि बाबा जी आप कहाँ थे, इतने दिन? बाबा जी ने बड़े प्यार से हमारे सर के बाल बिगाड़ते हुए कहा कि बेटा मोक्ष मार्ग पर चल निकला था पर मजबूरी में आधे रास्ते से ही वापस आ जाना पड़ा।

हमने जब कौतुहल वश पूरी बात समझनी चाही तो वो हमारे हाथ पकड़ कर और लगभग घसीटते हुए सामने की चाय की थडी पर ले गए और बोले बेटा, दो चाय का ऑर्डर दे दो, फिर तुम्हें पूरी कथा सुनाता हूँ।
हमने तुरंत बाबा जी की आज्ञा का पालन किया और उनके चेहरे पर आँखे गड़ा दी।बाबा जी ने बिना वक़्त गवाएँ सिलसिलेवार आपबीती सुनाना शुरू कर दिया।

बाबा जी बोले कि बेटा, मैं पिछले पाँच सालों से एक चमत्कारी और तेजस्वी बाबा के शरण में था।उनके आश्रम में मैंने निस्वार्थ भाव से उनकी सेवा की। मुझे पूरा विश्वास था कि बाबा की कृपा से, मैं एक ना एक दिन परं पिता परमेश्वर के दर्शन अवश्य करूँगा।हमारे बाबा ने कई भक्तों को ईश्वर की शरण में पहुँचा दिया था।एकदिन बाबा मेरी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे मुख्य सेवादार के पद पर प्रमोशन दे दिया।

मैं बाबा का खासमखास सेवक था।उन्होंने मुझे एक बार समझा दिया था कि तुम बस अपने लक्ष्य पर टिके रहो बाकी हमारी किसी भी गतिविधि की जड़ खोजने की तुम्हें कोई जरूरत नही है, क्यों कि मैं सिर्फ़ ईश्वर के आदेश का पालन करता हूँ। जब तक मैं आश्रम में रहा तब तक मैंने कभी पलटकर बाबा जी से कोई सवाल नही किया।वो अपनी गुफा रूपी शयन कक्ष में क्यों सिर्फ़ कम उम्र की लड़कियों से सेवा कराते थे या क्यों नामी गरामी हस्तियों से मिलते थे,ये बात हमने ना किसी को बताई ना ही पूछी।कभी कभी आश्रम में कोई श्रद्धालु चंदा देता था तो उसे रखने के लिए वो मुझे ही तिजोरी की चाबी सोंपते थे।हमारे बाबा अनुशासन के एकदम पक्के और भक्तों के लिये सदैव समर्पित रहते थे।वो घंटों हज़ारों भक्तों के सामने नृत्य किया करते थे और जिसपर भी हाथ रख देते थे उसे ही शयनकक्ष में सेवा का विशेष अवसर प्राप्त होता था। हमने अनेक बार अपना सर बाबा की हथेली के नीचे लाने की कोशिश की पर भाग्य ने कभी साथ ही नही दिया।हाला कि हमारे बाद आश्रम में आईं कई महिला भक्तों को यह सोभाग्य प्राप्त हो गया था।

हमने कौतूहलवश पूछा,क्या वो अब नही रहे? वो चाय का गिलास ज़ोर से ज़मीन पर रखकर बोले कि कैसा बेहूदा प्रश्न करते हो।भगवान के दूत कभी नही मरते वो अमर रहते हैं।वो तो सिर्फ़ कुछ समय के लिए कृष्ण जन्म स्थान की सेवा करने गए।फिर बिना हमारे प्रश्न की प्रतीक्षा किये बोले, कृष्ण का जन्म कहाँ हुआ था? कारावास में ना। वहीं गए हैं।और जल्दी लौट कर आ जायेंगे। हमने पूछा, यह आपको कैसे पता?हमारे बाबा जी बोले कि आश्रम में कभी कभी टेलीफ़ोन के ज़रिए उनके बाबा की आवाज़ प्रकट होती है और उनके प्रवचन से सब लाभान्वित होते हैं।वो लगातार आश्रम के और भक्तों के सम्पर्क में रहते हैं।

जब हमने उनका अंतिम वाक्य सुना तो हम उसी क्षण उठ खड़े हुए और बिना उनके बाबा का नाम जाने और आगे की कहानी सुने रवाना हो गए।जाते जाते हमने उनके घुटने भी नही छुए।

उपरोक्त व्यंग्य धाक धिना धिन लेखक अनिल सक्सेना “अन्नी” के स्वमं के विचार है, पाठक के सुझाव/शिकायत उनकी ईमेल [email protected] या मोबाइल नम्बर 9829240004 पर भेजे जा सकते है।

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