अनिल सक्सेना “अन्नी” एक जरा सी बात पर वो विद्रोही हो गये जी। बात ना बात की पूंछ बस लगे उटपटांग गरियाने।पेट्रोल कुछ पैसा महंगा क्या हो गया,बस सर पर आसमान उठा लिया।असल मे वो है ही नकारात्मक सोच के। इनसे पूछो जितने पैसे इस पेट्रोल के बढ़ते हैं, उतने की तो ये पान की डंडी भी नही खरीद सकते।ऐसी बाते करते हैं जैसे सरकार को और कोई काम ही नही। सरकार जिस दिशा में आगे बढ़ रही है उसकी तो वो तारीफ करते नही बस आलतू फालतू के मुद्दों को…
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व्यंग्य : धाक धिना धिन, बाबा जी के बाबा
अनिल सक्सेना “अन्नी” हमारी कालोनी में एक किराने की दुकान है। बीस साल से वहीं से घर का सामान लाया जा रहा है।घर जैसे सम्बंध हो जाने के कारण, दुकानदार हमें बड़ी उदारता से उधारी दे देता है।इन सम्बन्धों का कभी कभी जायज़ फ़ायदा उठाकर, हम उधार की EMI भी उससे बँधवा लेते हैं। दुकानदार जिसका नाम केसर प्रसाद है, उसके एक पिता जी होते थे,मेरा मतलब पिता जी हैं। “थे” और “है” से हमारा अभिप्राय यह है कि पाँच साल पहले वो भी अपने बेटे का हाथ दुकानदारी में हाथ…